
NATO और UN को छोड़ना अमेरिका के लिए साबित होगा सबसे ज्यादा नुकसान? जानें क्या–क्या बदलेगा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उद्योगपति एलन मस्क ने नाटो (NATO) और संयुक्त राष्ट्र (UN) से अमेरिका के संभावित अलगाव के बारे में चर्चा की है। ट्रंप ने पहले भी संकेत दिए हैं कि वह इन संगठनों से अमेरिका को पीछे हटाने का विचार कर सकते हैं, हालांकि उन्होंने नाटो के साथ बने रहने का दावा किया है। इस स्थिति के संदर्भ में, ये समझना महत्वपूर्ण है कि अमेरिका के लिए नाटो और यूएन का क्या महत्व है और यदि अमेरिका इनसे दूर होता है तो इसका प्रभाव क्या होगा ।
नाटो का महत्व सदस्य देशों के संबंध में
नाटो का गठन दूसरे विश्व युद्ध के बाद किया गया था, जिसमें 30 देशों ने मिलकर एक रक्षात्मक सैन्य गठबंधन बनाया था। इसका उद्देश्य सोवियत संघ के खिलाफ सहयोग बढ़ाना था। नाटो का मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में है, और इसके प्रमुख सदस्यों में अमेरिका, फ्रांस और यूके शामिल हैं, जिन्हें परमाणु संपन्न माना जाता है। यह संगठन अपने सदस्यों को सामूहिक सुरक्षा की गारंटी देता है, विशेष रूप से आर्टिकल–5 के माध्यम से, जो बताता है कि किसी एक सदस्य पर हमला सभी सदस्य देशों पर हमले के समान होगा।
यदि अमेरिका नाटो और यूएन से हटता है, तो इससे न केवल अमेरिका के सहयोगी देशों को नुकसान होगा, बल्कि वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा। नाटो में अमेरिका का योगदान सैन्य और वित्तीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण है। नाटो की सदस्यता से अमेरिका को अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करने में मदद मिली है, जबकि कई यूरोपीय देशों को अमेरिकी सैन्य सुरक्षा का लाभ मिलता है।
इस प्रकार, अगर अमेरिका इन संगठनों से अलग होता है, तो यह वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव ला सकता है। यूरोप के कई देशों को सुरक्षा चिंताओं का सामना करना पड़ेगा, और वैश्विक सुरक्षा प्रणाली में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अमेरिका की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर हो सकती है। अंततः, ट्रंप या मस्क द्वारा उठाए गए मुद्दे का अध्ययन करते हुए, यह स्पष्ट होता है कि नाटो और यूएन से अमेरिका की सदस्यता न केवल राजनीतिक और सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आर्थिक रूप से भी सहायक है। यदि अमेरिका इन संगठनों को छोड़ता है, तो ना केवल वह अपने सहयोगियों के प्रति एक संदेश भेजेगा, बल्कि अपनी वैश्विक स्थिति को भी जोखिम में डालेगा।
नाटो ऐसे चलता है अपना खर्च
नाटो का वार्षिक बजट लगभग 4.1 बिलियन डॉलर है, जो मुख्यतः नागरिक कर्मचारियों, प्रशासनिक लागत, रणनीतिक कमान, संयुक्त अभियानों, रडार, पूर्व चेतावनी प्रणाली, प्रशिक्षण, और रक्षा संचार प्रणालियों पर खर्च होता है। यह बजट सदस्य देशों की राष्ट्रीय आय पर आधारित है। अमेरिका और जर्मनी मिलकर इस बजट का 16 प्रतिशत और ब्रिटेन 11 प्रतिशत का योगदान देते हैं। पहले अमेरिका इस खर्च का 22 प्रतिशत से अधिक चुकाता था, लेकिन 2019 में नया फॉर्मूला लाया गया था ताकि इसकी वसूली में संतुलन बनाया जा सके।
नाटो के लिए अमेरिका जरूरी क्यों, किसको होगा नुकसान ?
अमेरिका नाटो के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूरे यूरोप में एक लाख से अधिक अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, नमें कुछ गैर नाटो अभियानों में भी सहायता करते हैं। अमेरिकी सैनिकों की संख्या में उतार–चढ़ाव होता रहता है, लेकिन वर्तमान में जर्मनी सबसे अधिक अमेरिकी सैनिकों को होस्ट करता है, उसके बाद इटली और ब्रिटेन का स्थान आता है। अमेरिका की जीडीपी 2024 में सभी नाटो सदस्यों की जीडीपी के बराबर होने का अनुमान है, और अमेरिका का रक्षा खर्च नाटो के कुल खर्च का दो तिहाई है।
कमजोर होगी देशों की सुरक्षा शक्ति
यदि अमेरिका नाटो का साथ छोड़ता है, तो इससे सदस्य देशों की सैन्य क्षमता कमजोर होगी। अमेरिका के बिना नाटो की सामूहिक सुरक्षा की स्थिति में गंभीर कमी आ सकती है। इस संदर्भ में, जर्मनी के होने वाले चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने अन्य यूरोपीय देशों को तेजी से मजबूत बनाने की सलाह दी है ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम की जा सके। हालांकि, उल्लेखनीय है कि जर्मनी में सबसे अधिक अमेरिकी सैनिक तैनात हैं,
जिस कारण वहां की सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है।
इसके अतिरिक्त, अमेरिकी फंडिंग रुकने से नाटो के लिए वित्तीय संचालन में कठिनाई उत्पन्न होगी। यदि अमेरिका नाटो से बाहर होता है,
तो इसके परिणामस्वरूप संगठन की सैन्य क्षमताओं में कमी आएगी, और यह सदस्य देशों की सामूहिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। यूरोप को अपने सैन्य बुनियादी ढांचे को मजबूती प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में अमेरिकी समर्थन पर निर्भरता कम की जा सके। ऐसे में,
नाटो देशों को अपनी रक्षा नीतियों में सुधार करना आवश्यक होगा। इस पूरी स्थिति में नाटो के बुद्धिमानी से भविष्य की योजना बनाना आवश्यक है,
ताकि उन्हें वैश्विक सुरक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना पड़े। अमेरिकी सेनाओं की यूरोप में तैनाती और आर्थिक योगदान के बिना, नाटो को अपनी रक्षा उपायों में पुनर्विचार करना होगा। अंततः, यह स्पष्ट है कि अमेरिका की भूमिका नाटो के लिए अद्वितीय है और उसके बिना सुरक्षा व्यवस्था में चुनौती पेश हो सकती है।
यूरोप के सामने खड़ी हो जाएगी खतरे की स्थित
यूरोप के सामने खतरे की एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है यदि अमेरिका नाटो से अलग हो जाता है। अमेरिकी विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय मसलों के प्रोफेसर जेम्स गोल्डगेयर के अनुसार, अमेरिकी हटने पर नाटो के पास वैकल्पिक नेतृत्व नहीं है और उसके पास कमांड एवं नियंत्रण प्रणाली, अंतरिक्ष हथियारों और हथियारों की आपूर्ति का कोई विकल्प नहीं होगा। इस परिस्थिति में रूस यूरोप पर आक्रमण कर सकता है, जिसके लिए यूरोप न तो तैयार है और न ही भविष्य में इसके लिए तैयार होने का कोई ठोस उपाय कर पाएगा।
अमेरिका को भी होगी कठिनाइयाँ
अमेरिका के लिए भी यह स्थिति कठिनाई भरी हो सकती है। यूक्रेन के संदर्भ में रूस के खिलाफ जो समर्थन पहले था, वह खत्म हो जाएगा। अमेरिका के साथ छोड़ने के बाद, यूरोपीय देशों को अपनी सैन्य शक्ति को अपने देश की रक्षा में लगाना पड़ेगा और यूक्रेन को हथियारों की तत्काल कमी का सामना करना पड़ेगा। यदि ट्रंप नाटो से अलग होने का फैसला लेते हैं, तो यह उनके देश के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकता है।
यदि अमेरिका की स्थिति में बदलाव आता है, तो यूरोपीय देश केवल अपने क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि अफ्रीका और पश्चिम एशिया में भी अमेरिका की उपस्थिति को सीमित कर सकते हैं। कई देश रूस और चीन के करीब चले जा सकते हैं, जिससे अमेरिका की सेना के बेस तक पहुंच बाधित हो सकती है।
संयुक्त राष्ट्र की फंडिंग पर भी पड़ेगा असर
संयुक्त राष्ट्र की फंडिंग पर भी असर पड़ेगा। अमेरिका, जो साल 2023 में यूएन को 13 बिलियन डॉलर का योगदान दे चुका है, यदि यूएन से हाथ खींचता है, तो इसकी फंडिंग में कमी आएगी। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम जैसी संस्थाएं पूरी तरह से इस फंडिंग पर निर्भर हैं, और अमेरिका का पीछे हटना वैश्विक स्वास्थ्य सेवा पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
अमेरिका का वर्चस्व भी घटेगा
अमेरिका का संयुक्त राष्ट्र से हटना ट्रंप के लिए समस्याएं उत्पन्न करेगा। वैश्विक मंच से अमेरिका की अनुपस्थिति से उसके वीटो अधिकार में कमी आएगी। यूएन सुरक्षा परिषद के स्थायी पांच सदस्यों में से एक अमेरिका को अपनी सीट गंवानी पड़ सकती है,
जिससे उसकी वैश्विक वार्ता और मध्यस्थता की क्षमता कमजोर हो जाएगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के नाटो से हटने से उसकी वैश्विक पकड़ और प्रभाव भी प्रभावित होगा। इससे चीन की स्थिति मजबूत होगी और यह संभव है कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ चीन के प्रभाव में आई जाएं। अमेरिका की अनुपस्थिति में वैश्विक मुद्दों पर उसकी पकड़ कमजोर होगी, जिससे अमेरिका को भविष्य में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।